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किस मिटटी से बने हो तुम ?




किस मिटटी से बने हो तुम 
कि अपने सपनों के आगे 
तुम्हे कोई चीज़ दिखाई नहीं देती ?

किस मिटटी से बने हो तुम 
कि सफलता प्राप्त करने के लिए 
तुम भ्रष्टाचार का रास्ता चुनते हो?

किस मिटटी से बने हो तुम 
कि लाखों रूपये कमाने के बाद भी 
और धन पाने की प्यास नहीं बुझती?

खुद की प्यास पानी से 
खुद की भूख पकवान से 
सरकार  की मांग रिश्वत से 
और मजबूर की वेदना लात से?

ज़ालिम दुनिया के नशे में ही खो गए 
कि फायदा ना रहा तुमसे पूछने का 
कि किस मिटटी से बने हो 

किस मिटटी से बने हो तुम 
कि अपनी शांति को कायम रखने के लिए 
मासूम के जीवन को हिला  देते हो?

किस मिटटी से बने हो तुम 
कि पुरस्कार जीतकर आगे बढ़ गए 
जिस हाथ से सहारा दिया, उसे पीछे छोड़ आए ?

एहसान लेकर दुनिया देख आये 
फिर मूह फेर लिया, और उनकी मदद नहीं कर पाए?
अरे ऊंचे पद से संसार छोटा ही दीखता है 
चाँद छूकर कुछ पाया नहीं,
जब तुमने अपना बाकी सब खोया है 

खैर कोई फायदा ना रहा तुमसे पूछने का 
कि तुम किस मिटटी से बने हो 

किस मिटटी से बने हो तुम 
कि  अपने आप को महान दिखाना के लिए 
अपने दुलारों को नीचा दिखाते हो

किस मिटटी से बने हो तुम 
कि लोगों का प्यार पाने के लिए
 उन्हें खरीद लेते हो?

अपनी सलामती के अलावा 
अपने भाई की पीड़ा नहीं समझ पाते 
अपने मित्र की काम्याबी से 
तुम्हे सिर्फ जलन होती है?

नंगे पैर चलते चलते इतनी दूर गए 
कि अब भूल गए जूते कहाँ उतारे थे 
कोमल एढियां कड़क बन गयीं
निर्मल दिल, पत्थर बन गया 

और अब कोई फायदा ना रहा तुमसे पूछने का 
कि तुम किस मिटटी से बने हो 

अरे तुम किस मिटटी से बने हो 
कि मेरी आँखों में झाँककर 
तुम्हे सच नहीं दीखता?

किस मिटटी से बने हो 
कि मुझसे झूठ पर झूठ कहकर 
तुम्हे कभी शर्म नहीं आती?

किस मिटटी से बने हो तुम 
कि अपने स्वार्थ में खोकर 
मेरे बारे में भूल गए?

भूल गए कि तुम्हारा कोई है 
भूल गए कि प्यार कैसे किया जाता है 
भूल गए? भूल गए कि ख़ुशी क्या होती है 

अपनी इस अकड़ ही गम गए 
कि  फायदा ना रहा तुमसे पूछने का 
कि  आखिर किस मिटटी से बने हो तुम?


Vasudhaa Ahuja is a first year LLB student at JGLS. She’s passionate about poetry and theatre. She has won an award for this poem and it was also read out at the NCPA poetry festival.


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